बार बार गर्भपात? क्या सावधानी लें?
गर्भाधान एक आनंददायक अनुभव होता है| लेकिन कई बार कई दंपतियों में गर्भाधान तो हो जाता है पर प्रेग्नंसी आगे बढ़ नहीं पाती| गर्भाधान हो जाने के कुछ हफ़्तों बाद ही गर्भपात हो जाता है| जाहीर है, ऐसे दंपती निराश और परेशान तो हो ही जाते हैं और साथ ही उनके मन में यह सवाल आता रहता है कि आखिर क्यों होता है बार बार गर्भपात? इस ब्लॉग में जानिए:
· बार बार गर्भपात होने के कारण क्या है?
· इस स्थिति का निदान कैसे किया जा सकता है?
· इसका इलाज क्या है?
रिकरंट या बार बार होनेवाले गर्भपात के कारण:
यदि किसी महिला का २ या अधिक बार लगातार गर्भपात हो जाता है तो उसे रिकरंट गर्भपात की स्थिति समझी जाती है| १ % दंपती में यह स्थिति देखी जाती है| इसके तीन कारण होते हैं: बीज, जमीन और वातावरण से संबंधित कारण याने:
१. जब गर्भाधान होता है तो भ्रूण स्वस्थ होना चाहिए
२. बच्चेदानी स्वस्थ और सक्रिय होनी चाहिए
३. माँ के खून में कोई अँटीबडीज या असामान्यताएँ नहीं होनी चाहिए
जब गर्भपात बार बार होता है तो इसमें से एक कारण होता है| गर्भाशय में झिल्ली या सेप्टम होना, गर्भपात का एक आम कारण है| यूट्रस में कभी कभी जन्मजात, बनावटी खराबी होती है या कभी कभी फायब्रॉइड की वजह से भी बार बार गर्भपात होता है|
दूसरा कारण यह होता है कि भ्रूण में बार बार क्रोमोझोमल असमान्यताओं के साथ बनता है| इसका कारण होता है दंपती में से किसी में न दिखनेवाली कोई क्रोमोझोमल असामान्यता होना!
भ्रूण बन जाने के बाद, पाँच दिन के बाद गर्भाशय में चिपक जाता है| इसके बाद ५-६ हफ़्तों में वह माँ के ब्लड वेसल्स से संपर्क बनाता है और यशस्वी प्रेग्नंसी में यह संपर्क बन जाना बेहद महत्वपूर्ण है| लेकिन, अगर माँ के खून में अँटीफॉस्फोलिपिड अँटीबडीज या अन्य कोई असामान्यताएँ हो तो खून में गठानें बनने की प्रवृत्ति बढ़ जाती है| इससे भ्रूण का माँ के ब्लड वेसल्स के साथ संपर्क नहीं बन पाता और फिर छ: से दस हफ़्तों में गर्भपात हो जाता है|
थायरॉइड, डायबेटीस या ऐसी कोई हार्मोनल समस्या की वजह से भी बार बार गर्भपात होने की स्थिति बन जाती है| कुछ दंपतियों में सभी जाँचें सामान्य होने पर भी बार बार गर्भपात होता रहता है| ऐसी स्थिति का कारण विज्ञान को भी अभी ज्ञात नहीं और इसलिए इलाज भी संभव नहीं!
लेकिन, ८० प्रतिशत केसेस में निदान और उपचार संभव है| इसलिए दंपतियों को चाहिए कि निराश और परेशान न हो और यथोचित निदान करवाया जाए| इसके लिए सब से पहले यूट्रस की सोनोग्राफी की जाती है और देखा जाता है कि कोई झिल्ली, फायब्रॉइड या बनावटी खराबी न होने की परीक्षा की जाती है| फिर माँ के खून की जाँच करके कोई अँटीबडीज या असामान्यताएँ न होने की परीक्षा की जाती है और अंतत: दंपती की क्रोमोझोमल जाँच भी की जाती है| २ या ३ गर्भपात होने पर भ्रूण की भी क्रोमोझोमल जाँच करवानी चाहिए ताकि पता चले कि कौन से प्रकार की असामान्यता है|
कारण जानकर, योग्य निदान और उपचार से ८० % केसेस में गर्भपात से बचना संभव है और स्वस्थ संतानप्राप्ति हो सकती है| १०-२०% केसेस में कारण का पता नहीं लगता लेकिन बड़े पैमाने पर इसका विश्लेषण और जाँच की जा रही है और इसके भी उपचार अवश्य ही पाए जाएँगे| इसलिए हौसला रखकर जल्द से जल्द उपचार लेने चाहिए|
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