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Showing posts from March, 2021

एडीनोमायोसिस

  एडीनोमायोसिस महिलाओं को कई प्रकार की स्वास्थ्य विषयक समस्याएँ सताती रहती हैं| इनमें से एक है एडीनोमायोसिस! इस ब्लॉग में हम तीन विषयों की जानकारी प्राप्त करेंगे: ·           एडीनोमायोसिस के लक्षण ·           एडीनोमायोसिस के कारण ·           एडीनोमायोसिस के उपचार एडीनोमायोसिस के लक्षण:        आम तौर पर यह समस्या महिलाओं में ४० या ५० की उम्र के बाद देखी जाती है| इस के प्रमुख लक्षण कुछ इस प्रकार के होते हैं: ·           माहवारी के समय बहुत तेज दर्द होना: यह दर्द इतना तीव्र होता है कई महिलाएँ २-३ दिन तक अपने रोज के कामकाज नहीं कर पाती, बेडरेस्ट लेनी पडती है और कई बार अस्पताल में भर्ती होकर भी दर्द-निवारक दवाइयाँ लेनी पडती है| सामान्यत: यह दर्द ३५ की उम्र के बाद शुरू होता है और १० प्रतिशत महिलाओं में ४५ तक की उम्र तक यह समस्या देखने को मिलती है| ·           माहवारी में बहुत ज्यादा खून बहना याने मेनोरेजिया हो जाना| एडीनोमायोसिस के कारण: ·           यूट्रस की दो परतें होती हैं| अंदर की जो परत होती है उसे एंडोमीट्रियम कहा जाता है| बाहर की परत को मायोमीट्रियम कहा जाता है| यह परत स्नायु से बनी

एंडोमीट्रिओसिस क्या होता है?

  एंडो मी ट्रिओसिस  क्या होता है ? एंडो मी ट्रिओसिस  एक ऐसी बीमारी है जिससे अनेक महिलाएँ परेशान रहती है और कई बार यह संतानहीनता का भी कारण बन जाती है| इस बीमारी के बारे में और उसके क्या उपचार संभव हैं इस बारे में हम प्रस्तुत ब्लॉग में जानकारी हासिल करेंगे| यूट्रस की अंदरुनी लायनिंग को एंडोमीट्रियम कहते हैं| यह लायनिंग अगर यूट्रस के बाहर किसी अन्य जगह पर बढने लगती है तो उस अवस्था को  एंडो मी ट्रिओसिस  कहा जाता है| यह लायनिंग ओव्हरीज या यूट्रस के पीछे की सतह, आतडें और कभीकभी फेफड़ों और त्वचा पर भी बढने लगती है| सीधे शब्दों में, अगर एक्टोपिक एंडोमेट्रियम हो याने गर्भाशय का अंदरुनी लायनिंग अपनी निश्चित जगह छोड़कर ,  गर्भाशय के बाहर किसी अन्य जगह पर बढ़ रहा हो तो उस स्थिती को  एंडो मी ट्रिओसिस  कहते हैं| इस बीमारी में क्या होता है ? ·           एंडोमीट्रियम अपनी निश्चित जगह के अलावा कही ओर बढता है| ·           हर महीने में जब माहवारी आती है तो गर्भाशय का यह लायनिंग बाहर निकल जाता है परंतु अगर यह निश्चित स्थान से अलग जगह पर हो तो यह बाहर निकल नहीं पाता| ·           लेकिन माहवारी के समय जहाँ भी

जुडवाँ गर्भ हो तो इन बातों का जरूर ध्यान रखें!

  जुडवाँ गर्भ हो तो इन बातों का जरूर ध्यान रखें! जुड़वाँ गर्भधारणा का जब निदान होता है तो दंपती की सब से पहली प्रतिक्रिया होती है, अचरज लगना| यह समाचार सुनकर दंपती हैरान हो जाते हैं और उनके मन में कई प्रकार के सवाल आते हैं| सब से आम चिंता होती है कि बच्चे जुडे हुए याने कनजोंइंड तो नहीं! दंपती को यह भी डर लगा रहता है की जुडवाँ गर्भ में कोई समस्या या अनैसर्गिकता तो नहीं है! आज कल फर्टिलिटी उपचारों की वजह से ट्विन्स होने की संभावना बढ गयी है| पहले ०.५ से १% केसेस में ट्विन्स होते थे| आज १० से २०% केसेस में ट्विन्स होते हैं| जुडवाँ या ट्विन गर्भधारणा की निश्चिती होते ही सब से पहले यह जान लेना जरूरी होता है कि क्या यह गर्भधारणा दो अलग अलग बीजों के फलन से हुई है (डायझायगोटिक ट्विन्स) या एक ही भ्रुण का विभाजन होकर ट्विन्स बने हैं (मोनो झायगोटिक)| यह जानना बहुत जरूरी होता है क्यूँकि आगे की सावधनियाँ ट्विन्स के प्रकार के अनुसार बदलेंगी| यह बात १२ हफ्ते से पहले सोनोग्राफी द्वारा जानी जा सकती है| इसीलिए हर गर्भवती महिला की १२ हफ्ते के पहले सोनोग्राफी होना आवश्यक है क्यूँकि दोनों बच्चों का प्लासेन्