जुडवाँ गर्भ हो तो इन बातों का जरूर ध्यान रखें!
जुड़वाँ गर्भधारणा का जब निदान होता है तो दंपती की सब से पहली प्रतिक्रिया होती है, अचरज लगना| यह समाचार सुनकर दंपती हैरान हो जाते हैं और उनके मन में कई प्रकार के सवाल आते हैं| सब से आम चिंता होती है कि बच्चे जुडे हुए याने कनजोंइंड तो नहीं! दंपती को यह भी डर लगा रहता है की जुडवाँ गर्भ में कोई समस्या या अनैसर्गिकता तो नहीं है! आज कल फर्टिलिटी उपचारों की वजह से ट्विन्स होने की संभावना बढ गयी है| पहले ०.५ से १% केसेस में ट्विन्स होते थे| आज १० से २०% केसेस में ट्विन्स होते हैं| जुडवाँ या ट्विन गर्भधारणा की निश्चिती होते ही सब से पहले यह जान लेना जरूरी होता है कि क्या यह गर्भधारणा दो अलग अलग बीजों के फलन से हुई है (डायझायगोटिक ट्विन्स) या एक ही भ्रुण का विभाजन होकर ट्विन्स बने हैं (मोनो झायगोटिक)| यह जानना बहुत जरूरी होता है क्यूँकि आगे की सावधनियाँ ट्विन्स के प्रकार के अनुसार बदलेंगी| यह बात १२ हफ्ते से पहले सोनोग्राफी द्वारा जानी जा सकती है| इसीलिए हर गर्भवती महिला की १२ हफ्ते के पहले सोनोग्राफी होना आवश्यक है क्यूँकि दोनों बच्चों का प्लासेन्टा एक है या अलगअलग है इस बात को जानकार उस प्रकार की सावधानी और निगरानी बहुत महत्वपूर्ण होती है| ट्विन गर्भधारणा में तीन तिमाही में ये कुछ विशेष फर्क साधारण सिंगल प्रेग्नंसी की अपेक्षा देखे जाते हैं:
पहली तिमाही
· जी खट्टा होना, उलटी होना, थकान होना; यह सामान्य गर्भावस्था से अधिक मात्रा में हो सकता है
· कभी कभी ब्लीडिंग भी हो सकती है| ऐसी केसेस में बेडरेस्ट या कुछ अधिक दवाइयाँ दी जाती है|
दूसरी तिमाही
· १२ से २० वे हफ्ते के बीच सोनोग्राफी से सर्व्हिक्स का परीक्षण होना बहुत आवश्यक है| कभी कभी ट्विन प्रेग्नंसी का भार यूट्रस उठा नहीं पाता और उसका मुँह खुलने लगता है|
· इंटरनल सोनोग्राफी से इस स्थिती का पता चलता है और उसके उपचार स्वरुप प्रोजेस्टेरॉन के या तो इंजेक्शन दिए जाते हैं या कभी कभी टाँका डालकर भी खुला हुआ मुँह बंद किया जाता है|
तीसरी तिमाही
· इस तिमाही में शुगर बढना, ब्लड प्रेशर बढना या खून की कमी होना, ऐसी समस्याएँ ट्विन प्रेग्नंसी में अधिक मात्रा में आ सकती हैं| इसलिए अगर सामान्य रूप से महीने में एक बार चेक-अप के लिए बुलाया जाता हो तो ट्विन गर्भावस्था में १५ दिन के बाद भी डॉक्टर बुला सकते हैं| अच्छी तरह और लगातार निगरानी रखना बहुत जरूरी होता है|
· दोनों बच्चों के साथ विकास होने पर इस तिमाही में गौर करना जरूरी होता है| कभी कभी एक बच्चे का विकास पीछे रह जाता है| यह फर्क अगर २५% से अधिक हो तो ज्यादा बार सोनोग्राफी करके देखा जाता है कि जिस बच्चे का विकास कम है, उसे ठीक तरह से खून का प्रवाह पहुँच रहा है या नहीं! कई बार जल्दी डिलिव्हरी करने का निर्णय भी लेना पडता है|
ट्विन प्रेग्नंसी में समय के पूर्व डिलिव्हरी होने की संभावना सिंगल प्रेग्नंसी से २० गुना ज्यादा होती है| प्री-टर्म याने ३७ हफ़्तों से पहले होनेवाली डिलिव्हरी! यह रोकने के लिए २८ से ३४ हफ़्तों के बीच में ही माँ को स्टिरॉइड इंजेक्शन दिया जाता है जिससे बच्चे के फेफड़ों का विकास बराबर हो सके और डिलिव्हरी जल्दी भी हो तो भी बच्चे पर विपरीत असर ना हो|
ट्विन प्रेग्नंसी में ज्यादातर सिझेरियन डिलिव्हरी करनी पडती है क्यूँकि एक बच्चा पाँव से, एक सिर से हो सकता है, दोनों की स्थिती उलटी हो सकती है, आडी, तिरछी हो सकती है या पीछे का बच्चा बडा हो सकता है| ऐसे अनेक कारण होते हैं जिससे विचारपूर्वक सिझेरियन का निर्णय लिया जाता है पर नैसर्गिक प्रसूती भी नामुमकिन नहीं होती|
डिलिव्हरी के बाद, ब्लीडिंग ज्यादा होने की इन केसेस में संभावना होती है| इसलिए पेशंट को अपना हिमोग्लोबिन अच्छा रखना चाहिए, खून मँगवाने का भी इंतेजाम तैयार रखना चाहिए| ऐसी प्रेग्नंसी में डिलिव्हरी के बाद यूट्रस अपने पुराने साइझ में आने की प्रक्रिया धीरे से होती है| साथ ही दो बच्चों को संभालना मुश्किल काम है| इसलिए परिवार की पूरी मदद जुडवाँ बच्चों के माता-पिता को अवश्य होनी चाहिए|
सारी सावधानियाँ ठीक से लेकर और योग्य निगरानी से स्वस्थ गर्भावस्था और डिलिव्हरी यकीनन मुमकीन हैं|
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