अझुस्पर्मिया और संतानहीनता
किसी भी दंपती को जब संतानहीनता की समस्या का सामना करना पड़ता है तो डॉक्टर सब से पहले पती के वीर्य की जाँच करवाने की सलाह देते हैं| इस जाँच से अॅझुस्पर्मिया याने शून्य शुक्राणु प्राप्त होने की स्थिती का पता चलता है और यह यकीनन संतानहीनता का एक प्रमुख कारण है| इस स्थिती में वीर्य में शून्य शुक्राणु जीवित मिलते हैं| अगर शुक्राणु की संख्या शून्य या नहीं के बराबर है तो जाहीर है कि गर्भावस्था आने में दिक्कत होगी| इससे दंपती बहुत ही निराश हो जाते हैं लेकिन अब ऐसी स्थिती में भी संतान प्राप्त करना संभव है|
अझुस्पर्मिया के प्रकार:
सामान्य परिस्थिती में स्पर्म लगातार टेस्टीस में बनते रहते हैं| लेकिन अॅझुस्पर्मिया की समस्या में वीर्य में शुक्राणु पाए नहीं जाते| अॅझुस्पर्मिया की समस्या प्रमुखत: दो प्रकार की होती है:
१. ऑब्सट्रक्टीव अझुस्पर्मिया
ऑब्सट्रक्टीव अॅझुस्पर्मिया की जो स्थिती होती है उसमें टेस्टीस में शुक्राणु की निर्मिती तो बराबर होती रहती है लेकिन मार्ग में किसी रुकावट के कारण शुक्राणु वीर्य में बाहर नहीं आ पाते|
२. नॉन-ऑब्सट्रक्टीव अझुस्पर्मिया
नॉन- ऑब्सट्रक्टीव अॅझुस्पर्मिया में टेस्टीस में शुक्राणु की निर्मिती होती रहती है लेकिन इनकी मात्रा इतनी कम होती है की वे वीर्य में बाहर नहीं आ पाते|
उपचार करते वक्त प्रकार की निश्चिती करना बेहद जरूरी है| जाँच करके समस्या का पूर्ण ज्ञान हो जाने से यथायोग्य उपचार किए जा सकते हैं|
उपचार:
अझुस्पर्मिया होते हुए भी दंपती संतती प्राप्त कर सकते हैं| पहले तो ऐसे दंपतियों के लिए आययूआय तरीका सुझाया जाता था जिसमें डोनर बैंक से शुक्राणु लेकर उससे बीज का निषेचन करके भ्रूण की निर्मिती की जाती थी और फिर वह भ्रूण महिला की बच्चेदानी में डाल दिया जाता था| लेकिन वैसे तो सभी दंपती चाहते हैं कि उनके अपने जैविक गुणों का बच्चा हो| आज विज्ञान की इतनी तरक्की हुई है कि अझुस्पर्मिया होते हुए भी दंपती असिस्टेड रिप्रॉडक्टिव तकनीकों से अपना खुद का बच्चा प्राप्त कर सकते हैं| ऐसे दंपतियो के लिए इक्सी (ICSI: Intra cytoplasmic sperm injection) प्रक्रिया बहुत ही लाभदायक होती है| ऐसे पुरुषों के लिए SSR याने सर्जिकल स्पर्म रीट्रीव्ह्ल थेरपी का उपयोग किया जाता है|
पद्धतियाँ:
ऑब्सट्रक्टीव अझुस्पर्मिया में एपिडिडायमिस के अंदर नीडल डालकर शुक्राणु टेस्टीस से निकाले जाते हैं| ऐसी पद्धति में निकले हुए शुक्राणु कम होते हैं इसलिए इनसे नैसर्गिक गर्भधारणा का प्रयास करना संभव नहीं| लेकिन इन स्पर्म्स को लैब में कल्चर किया जाता है और इक्सी से बीज का निषेचन करवाके, भ्रूण को महिला के यूट्रस में डाला जा सकता है| नॉन- ऑब्सट्रक्टीव अझुस्पर्मिया की समस्या ज्यादा मुश्किल होती है| इसमें वीर्य में शुक्राणु की संख्या शून्य होती है लेकिन कहीं कोई रूकावट नहीं होती| शुक्राणु की निर्मिती ही कम मात्रा में होती है| लेकिन ऐसे पुरुषों के टेस्टीस में भी ऐसे कुछ हॉटस्पॉट होते हैं जहाँ शुक्राणु पाए जाते हैं| ऐसे केसेस में टीसा इक्सी (TESA ICSI) तकनीक का प्रयोग किया जाता है|
TESA technique
इस तकनीक में नीडल से स्पर्म निकाले जाते हैं लेकिन इनकी संख्या कम होती है और इनमें आवश्यक गतिशीलता नहीं होती| ये परिपक्व नहीं होते| इसलिए इन्हें लैब में कल्चर करके गतिशीलता लायी जाती है और फिर चुनकर एक स्पर्म को बीज के अंदर इंजेक्ट करके एम्ब्रियो की निर्मिती की जाती है और फिर उस एम्ब्रियो का यूट्रस में स्थालांतर किया जाता है| टीसा पद्धति से ६०-७० प्रतिशत दंपतियों में स्पर्म मिल जाते हैं लेकिन कुछ दंपतियों में यह भी तकनीक काम नहीं करती| ऐसे लोगों के लिए एक अतिविकसित पद्धति उपलब्ध है जिसे मायक्रोडिसेक्शन टीसे कहा जाता है| इस पद्धति से अझुस्पर्मिया के उपचार में लक्षणीय विकास हुआ है| यह एक परिष्कृत तकनीक है जिसमें टेस्टीस को खोलकर मायक्रोस्कोप की सहायता से खास ट्यूब्यूल के अंदर से स्पर्म निकाले जाते हैं| इस तकनीक में टेस्टीस को खोलकर देखे जाने की देखे जाने की सुविधा के कारण ९० प्रतिशत केसेस में स्पर्म मिल जाते हैं| यह पद्धति उन सभी के लिए वरदान है जिनका पहले टीसा नाकामयाब हो चुका है, जिनके टेस्टीस की साइज बहुत कम हो चुकी है और जिनका एफ़एसएच हार्मोन का स्तर बहुत ज्यादा है|
अॅझुस्पर्मिया होते हुए भी आज संतानप्राप्ती निश्चित रूप से हो सकती है| वैद्यकीय विज्ञान के पास इन समस्याओं का समाधान है जो आसान है और बहुत ही लाभदायक है| इसलिए निराश ना होकर जल्द से जल्द डॉक्टर से मिलकर अवश्य सहायता लेनी चाहिए|
और जानकारी के लिए देखें: https://youtu.be/h8_qIzZMv9g
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