पुरुषों के वीर्य की जाँच से संबंधित महत्वपूर्ण बातें
वीर्य की जाँच, संतानहीनता के उपचार में एक बेहद ही आवश्यक और महत्वपूर्ण जाँच है| यह जानना बहुत जरूरी है कि यह जाँच:
· किस तरह से की जानी चाहिए?
· इसका सँपल इकट्ठा करने का सही तरीका क्या है?
· किस तरह की लैब में यह जाँच करवानी चाहिए?
· इसके रिपोर्ट बनाने के मानक क्या हैं?
· रिपोर्ट को समझना कैसे चाहिए?
गर्भधारणा होने में महिला जितना ही सहभाग पुरुष का होने के कारण, संतानहीनता की समस्या में अक्सर डॉक्टर वीर्य की जाँच सबसे पहले करवाते हैं| यह जाँच करते हुए इन बातों का ध्यान रखना चाहिए:
· जितना हो सके उतना लैब के समीप सँपल इकट्ठा करना चाहिए क्यूँकि इकट्ठा करने के आधे घंटे के अंदर जाँच शुरू हो जानी चाहिए| इसका यह कारण है कि समय के साथ स्पर्म्स की मोटीलिटी याने आगे बढने की क्षमता कम होती जाती है| अगर परीक्षण करने में देर हो जाए तो रिपोर्ट सही नहीं आएगी|
· सँपल को हस्तमैथुन से इकट्ठा करना चाहिए| अगर पुरुष को इरेक्शन की कोई समस्या है तो पत्नी भी सहायक हो सकती है| कई बार इस क्रिया को करवाने के के लिए डॉक्टर दवाइयाँ भी देते हैं| साथ ही काँडोम कलेक्शन की सुविधा भी डॉक्टर दिलाते हैं और ये काँडोम स्पर्मिसायडल जेल से विरहित होते हैं क्यूँकि जेलवाले काँडोम भी स्पर्म्स को नष्ट कर सकते हैं|
· सँपल को, एक बड़े मुँह के नॉन-टॉक्सिक मटेरियल से बने कन्टेनर में इकट्ठा करना जरूरी है| कुछ प्लास्टिक टॉक्सिक होते हैं जो स्पर्म्स को मार देते हैं और इस वजह से भी रिपोर्ट गलत आ सकती है|
· एक और जरूरी बात यह है कि सँपल, इजाक्युलेशन के दो दिन बाद और सात दिन के अंदर इकट्ठा करना आवश्यक है| अगर दो दिन से कम और सात दिन से अधिक अवकाश हो तो शुक्राणु की संख्या में ऊँच-नीच या शुक्राणु की गतिशीलता कम-ज्यादा हो सकती है|
सही तरह से वीर्य का सँपल इकट्ठा करने के बाद, तीन बातों के प्रमुखत: परीक्षण किया जाता है:
· स्पर्म्स की कुल संख्या कितने मिलियन प्रति मिलिलिटर है? WHO के मानकों के अनुसार १५ मिलियन प्रति मिलिलिटर, लोवर परसेंटाइल है|
· स्पर्म्स की मोटीलिटी याने आगे बढने की क्षमता क्या है? WHO ने सामान्य रिपोर्ट आने के लिए, ३२ प्रतिशत प्रोग्रेसिव्ह मोटीलिटी निर्धारित की हुई है|
· स्पर्म्स की बनावट या मॉरफॉलॉजी कैसी ही? इसका निर्धारित पाँचवा परसेंटाइल है ४ प्रतिशत| सामान्य व्यक्ती के भी केवल ५-६ प्रतिशत स्पर्म्स नॉर्मल हो सकते हैं और बाकी असामान्य हो सकते हैं| ये सभी निकष कृगर्स क्रायटेरिया याने बहुत ही कठोर निकष हैं| जो स्पर्म्स बॉर्डरलाइन पर होते हैं उन्हें भी असामान्य समझा जाता है| यदि रिपोर्ट ४ प्रतिशत से कम है तो स्पर्म्स की बनावट में यकीनन दोष है|
ये सभी मानक WHO के २०१० के मानक हैं और आज भी कई लैब्ज में इनका अनुपालन नहीं किया जाता| पुराने निकषों के अनुसार ही जाँच की जाती है| इसलिए जाँच कहाँ करवानी चाहिए इस पर गौर करना भी जरूरी है| इन मानकों के अनुसार बनी रिपोर्ट विश्वसनीय होती है और इन रिपोर्ट्स के आधार पर किया हुआ संतानहीनता का इलाज भी उतना ही अधिक आशादायक हो सकता है|
यदि रिपोर्ट में कोई भी असामान्य बात दिखाई देती है जैसे कि, शुक्राणु की संख्या में कमी, आगे बढने की क्षमता में कमजोरी या बनावट में खराबी; या तीनों समस्याएँ हो, तो भी निराश नहीं हो जाना चाहिए| एक रिपोर्ट के आधार पर कभी भी पूरा आकलन नहीं होता| हमेशा दो या तीन सँपल लिए जाते हैं और औसत की आधार पर पुरुष की इन्फर्टीलिटी का आकलन किया जाता है| यह जाँच आप के उपचार को एक दिशा देती है| इस के साथ ही अन्य कई बातें होती हैं जिन्हें ध्यान में लेना जरूरी होता है| अगर पिछले तीन महीनों में कोई दवाई ली गयी हो या बुखार या कोई बीमारी या अन्य अपाय हुआ हो तो उससे वीर्य की जाँच के रिपोर्ट पर प्रभाव पड़ सकता है और रिपोर्ट गलत आ सकती है| इसलिए डॉक्टर को अपना पूरा वैद्यकीय इतिहास, अपनी आदतें, लतें, ली हुई दवाइयाँ, इनके बारे में इमानदारी से बताना बहुत जरूरी है| इन सभी बातों को ध्यान में रखेंगे तभी सही दिशा में इलाज हो सकता है|
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