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जुडवा गर्भधारणा कैसे होती है

 जुडवाँ गर्भधारणा कैसे होती है?

जुडवाँ बच्चे होना वाकई कुदरत का करिश्मा होता है और इस विषय के बारे में सभी के मन में कौतुहल होता ही है| इस ब्लॉग में हम देखेंगे कि ट्विन्स या जुडवाँ बच्चे कैसे कन्सीव्ह होते हैं और इस के पीछे कारण क्या होता है! वैसे तो जुडवाँ बच्चे पैदा होने की औसत देखी जाए तो २५० में १ जुडवाँ बच्चों की डिलिव्हरी होती है| सब से पहले यह जान लेना जरूरी है कि जुडवाँ बच्चे दो प्रकार के होते हैं:

·         आयडेंटिकल या बिलकुल एक जैसे जुडवाँ बच्चे: ऐसे बच्चों का चेहरा-मोहरा, शक्ल-सुरत बिलकुल एक जैसी होती है|

·         नॉन-आयडेंटिकल जुडवाँ बच्चे: इनका प्रमाण ज्यादा होता है| इन जुडवाँ बच्चों का जन्म जरूर एक साथ होता है लेकिन ये एक दूसरे से दिखने में, हावभाव में भिन्न होते हैं|

ये दोनों प्रकार एक दूसरे से अलग होते हैं| अब देखते हैं कि ये कैसे कन्सीव्ह होते हैं!

·         नॉन- आयडेंटिकल जुडवाँ बच्चों को डाय-झायगोटिक ट्विन्स भी कहा जाता है| ये तब कन्सीव्ह होते हैं जब दो अलग अलग एग्स को दो स्पर्म फ़र्टिलाइज (निषेचन) करते हैं| नैसर्गिक रूप से किसी महिला के दो बीज एक साथ परिपक्व हो सकते हैं और दो शुक्राणु जब उनका अलग अलग निषेचन करते हैं तो दो झायगोट बनते हैं और एक साथ बच्चेदानी में जब उनका विकास होता है तो नॉन-आयडेंटिकल जुडवाँ बच्चे पैदा होते हैं| नैसर्गिक रूप से यह संभावना कम होती है क्यूँकि आम तौर पर महिला का एक ही एग हर सायकल में ओव्ह्युलेट होता है| लेकिन अगर महिला IUI उपचार के दौरान ओव्ह्युलेशन बढ़ानेवाली दवाई ले रही हो तो एक से ज्यादा बीज परिपक्व होते हैं और फिर जुडवाँ होने की संभावना बढ़ जाती है| जुडवाँ बच्चे होने की औसत बढने का एक बहुत बडा कारण है IVF| चूँकि इसमें एक से ज्यादा एम्ब्रियो बच्चेदानी में डाले जाते हैं, एक से ज्यादा भ्रूण पैदा होने की संभावना बढ़ जाती है| ऐसे अलग अलग निषेचन हुए एग्स से पैदा होनेवाले भ्रूणों का लिंग भिन्न हो सकता है या समान भी हो सकता है| एक लड़का, एक लडकी, दो लडकें या दो लडकियाँ कुछ भी हो सकता है| इनमें जो समानता होती है वह किसी भी अन्य भाई-बहन की जोड़ी की तरह होती है| फर्क बस इतना होता है कि उनका गर्भ में विकास और जन्म एक साथ होता है|

·         मोनो-झायगोटिक या आयडेंटिकल जुडवाँ बच्चे होना ज्यादा आश्चर्यकारक करिश्मा होता है| इसमें एक एम्ब्रियो दो हिस्सों में विभाजित हो जाता है| यह बहुत ही कम प्रमाण में दिखाई देता है| १००० में ३ डिलीव्हरी इस प्रकार की होती है| ऐसे बच्चों का लिंग, रंग-रूप, बनावट, ब्लड-ग्रुप सब कुछ समान होता है| ऐसी गर्भधारणा रोचक जरूर होती है लेकिन ऐसी गर्भावस्था में खतरे भी ज्यादा होते हैं| कई बार ऐसे ट्विन्स एक ही प्लासेन्टा का उपयोग करते हैं या कई बार दोनों बच्चे एक ही झिल्ली के अंदर होते हैं| ऐसी परिस्थिती में बच्चों के विकास पर ज्यादा ध्यान पड़ता है और खतरा भी अधिक होता है| अब जान लेते हैं कि मोनो-झायगोटिक ट्विन्स कैसे बनते हैं|

एम्ब्रियो तयार होने के दुसरे या तीसरे दिन को यदि विभाजन हो जाता है तो ऐसे बच्चों का प्लासेन्टा और झिल्ली अलग रहती है| इन्हें डायकोरियोनिक डायझायगोटिक ट्विन्स कहते हैं| यदि यह विभाजन, निषेचन के चौथे से आठवे दिन के बीच में होता है तब इन बच्चों का प्लासेन्टा एक होता है पर झिल्ली अलग होती है| अगर विभाजन, आठवे से बारहवे दिन के बीच में हुआ है तो प्लासेन्टा और झिल्ली दोनों एक ही होते हैं| इनका प्रमाण सब से कम होता है| यह स्थिती बच्चों के लिए खतरनाक होती है क्यूँकि दोनों बच्चों की प्लासेन्टा आपस में उलझ सकती है| सब से कम प्रमाण में होनेवाले ट्विन्स होते हैं कन्जॉइन्ड या जुड़े हुए जुडवाँ बच्चे! इन बच्चों में शरीर का कोई भाग एक दुसरे से जुडा होता है| अगर एम्ब्रियो का विभाजन १२ वे दिन के बाद हुआ हो तो यह स्थिती पैदा हो सकती है| यह होने की संभावना बहुत कम होती है लेकिन माता-पिता का जुडवाँ बच्चों का समाचार सुनते ही पहला प्रश्न होता कि बच्चे जुड़े हुए तो नहीं?

जुडवाँ बच्चों का विकास और प्रसूति सब कुछ खास सावधानी से किया जाता है और स्वास्थ्यपूर्ण बच्चों की डिलीव्हरी हो सकती है| हमरे अगले ब्लॉग में हम इस विषय में अधिक जानकारी देंगे|

 

 

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