फायब्रॉइड के कारण, लक्षण और उपचार
महिलाओं के स्वास्थ्य समस्याओं की बात की जाए, तो जुलाई महीने की एक विशेष पहचान है| जुलाई का महीना फायब्रॉइड अवेअरनेस मंथ याने फायब्रॉइड के विषय में जागृती लानेवाले महीने के रूप में जाना जाता है| इस समस्या से परेशान सभी महिलाओं को सहयोग देने का, इस विषय में उन्हें सही और अधिक जानकारी देने का इस महीने में हमारा प्रयास है|
फायब्रॉइड क्या होता है?
फायब्रॉइड याने बच्चेदानी की गठानें होती हैं| ये गठानें कॅन्सर की नहीं होती; बेनाइन होती हैं| फायब्रॉइड को गठान या रसौली जैसे नाम से जाता है| यह समस्या इतनी आम है कि ३० से ४० की आयु में ३० प्रतिशत महिलाओं को यह शिकायत होती है|
फायब्रॉइड के प्रकार:
बच्चेदानी की दो परतें होती हैं: अंदरी परत एंडोमेट्रीयम और बाहरी मायोमेट्रीयम! इनमें जो स्नायु की परत होती है, वहाँ से ये ट्यूमर या गठानें निकालने लगती हैं| अगर ये गठानें अंदर की परत की ओर बढती है तो उन्हें सबम्यूकस कहा जाता है, दोनों परतों के बीच हो तो इंट्रा-म्यूरल कहा जाता है और बाहर की तरफ हो तो सबसिरस फायब्रॉइड कहा जाता है|
फायब्रॉइड होने के कारण:
वैसे तो फायब्रॉइड होने का कोई निश्चित कारण नहीं बताया जा सकता| इस विषय में संशोधन हो रहा है| फिर भी तीन बातें सामने आ चुकी हैं:
* पहले तो ऐसा देखा गया है कि फायब्रॉइड आनुवंशिक होते हैं| जिन महिलाओं की माँ को यह समस्या होती है उन्हें यस समस्या हो सकती है|
* दूसरी बात जो देखी गयी है वह है कि कुछ विशिष्ट वंशों की महिलाओं में यह समस्या देखी जाती है| वंश का इसमें बडा महत्व है| कृष्णवंशीय ७० प्रतिशत महिलाओं में यह समस्या पायी जाती है|
* तीसरा कारण हार्मोन्स का भी देखा गया है| जिन महिलाओं की एक से अधिक गर्भावस्थाएँ हो चुकी हैं उनमें यह समस्या कम देखी जाती है| बच्चों की संख्या जितनी कम, उतनी फायब्रॉइड की संभावना अधिक होती है| ऐसा अनुमान है कि प्रोजेस्टेरॉन रिसेप्टर के बदलावों की वजह से यह समस्या हो सकती है पर निश्चित कारण के विषय में अभी भी संशोधन जारी है|
फायब्रॉइड के लक्षण:
फायब्रॉइड अलग अलग जगह पर होते हैं| कई बार पेशंट को पता ही नहीं होता कि उन्हें फायब्रॉइड हैं| जितना फायब्रॉइड बच्चेदानी के अंदर की होता है उतने लक्षण अधिक होते हैं| अंदरुनी फायब्रॉइड होने के कारण अधिक रक्तस्त्राव होता है और यह लक्षण जल्द से दिखाई देता है|
· पहला लक्षण है ब्लीडिंग ज्यादा होना, लंबे समय तक होना, रुक रुकके स्पॉटिंग होते रहना
· दूसरा लक्षण है दर्द! जब फायब्रॉइड बढता है तो बच्चेदानी की दीवार ओर जोर डालता है और इससे माहवारी के समय या अन्य दिनों में भी तेज दर्द होता है|
· कभी कभी मूत्र मार्ग या आतडों की समस्या का कारण भी फायब्रॉइड की वजह से होनेवाला दबाव
होता है|
· ऐसा एक लक्षण जो तुरंत समझ में नहीं आता, वह है संतानहीनता|
फायब्रॉइड का उपचार
ऐसी एक दवाई उपलब्ध थी जिससे फायब्रॉइड घुल जाते थे लेकिन उनका लिव्हर पर विपरीत परिणाम पाया गया और इसलिए यह दवाई बंद की गयी| अब ऐसे दो उपचार हैं जिससे फायब्रॉइड का उपचार किया जाता है:
· शस्त्रक्रिया से फायब्रॉइड निकालना
· किरणोत्सर्जन से एम्बुलायझेशन
क्या फायब्रॉइड का उपचार करना अनिवार्य होता है?
५० प्रतिशत महिलाओं को फायब्रॉइड के लिए उपचार लेने की आवश्यकता नहीं होती| उपचार लेने की जरूरत दो परिस्थितियों में होती है:
· अगर फायब्रॉइड का साइज २-३ सेंटीमिटर से अधिक है तो लक्षण ना होने पर भी उन्हें निकलवाना बेहतर होता है|
· अगर फायब्रॉइड के कारण लक्षण आ रहें हो तो साइज कम होने पर भी उन्हें निकालना पडता है|
· यदि फायब्रॉइड के कारण संतानहीनता हो रही हो और फायब्रॉइड बच्चेदानी की अंदर की तरफ बढ रहे हो तो उन्हें निकालना पडता है|
अगर इनमें से कोई कारण न हो तो फायब्रॉइड को केवल जाँचकर नियंत्रण में रखा जाता है पर शस्त्रक्रिया की आवश्यकता नहीं होती|
लैप्रोस्कोपी कब की जाती है?
जब लक्षण होते हैं तो फायब्रॉइड निकालना आवश्यक हो जाता है| ऐसे में लैप्रोस्कोपी तीन प्रकार से फायदेमंद होती है:
· दर्द कम करने के लिए
· शरीर को शस्त्रक्रिया के निशान से बचाने के लिए
· संसर्ग का खतरा कम करने के लिए
· पारंपरिक शस्त्रक्रिया की अपेक्षा इसमें छोटा चीरा पडता है, केवल दो दिन भर्ती होना पडता है और हफ्तेभर में पेशंट अपने रोज के कामकाज कर सकता है|
फायब्रॉइड के विषय में जागृती लाना, उसके लक्षण, उपचार समझ लेना बहुत आवश्यक है| इससे कई महिलाओं की समस्याएँ सुलझाई जा सकेगी| इस पूरे महीने में हम इस विषय पर और भी लेख लेकर आएँगे| ब्लॉग अवश्य पढ़ते रहिए|
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