निराश ना हो: लैप्रोस्कोपी से फायब्रॉइड्स का इलाज हो गया आसान!
हमारे अब तक के ब्लॉग्ज से आप जान चुके हैं कि फायब्रॉइड्स की वजह से संतानहीनता हो सकती है| पर यह भी यकीनन सही है कि इनका इलाज हो सकता है और फायब्रॉइड्स होकर भी संतानसुख प्राप्त किया जा सकता है| जब महिला के शरीर में कुछ ऐसे फायब्रॉइड्स होते हैं जिनका साइझ और स्थान संतानप्राप्ती में समस्या कर रहे हो तो उन्हें निकालना आवश्यक हो जाता है| पहले तो इसके लिए पेट को खोलकर शस्त्रक्रिया करने का एकमेव पर्याय उपलब्ध था| पर आज, लैप्रोस्कोपिक मायोमेक्टमी याने दूर्बीन से की जानेवाली शस्त्रक्रिया की वजह से इस क्षेत्र में क्रांती आयी है|
फायब्रॉइड्स याने बच्चेदानी की गठानें या ट्यूमर्स होते हैं| इसकी वजह से ज्यादा ब्लीडिंग होना, लंबे समय तक माहवारी चलती रहना, दर्द होना तथा संतानहीनता होना; ये समस्याएँ आम तौर पर देखी जाती है| फायब्रॉइड्स निकालने के बाद अक्सर प्रेग्नंसी रह जाती है और इसलिए फायब्रॉइड्स का प्रकार, स्थान और साइझ देखकर इन्हें निकालना जरूरी हो जाता है| लैप्रोस्कोपिक मायोमेक्टमी में यूट्रस को बिलकुल नुकसान पहुँचाए बिना ये गठानें निकाली जाती हैं|
आइए देखते हैं कि पारंपरिक खुली शस्त्रक्रिया की अपेक्षा लैप्रोस्कोपी में कौनसे लाभ होते हैं:
आइए पारंपरिक खुली शस्त्रक्रिया और लैप्रोस्कोपी में एक एक करके क्या भेद हैं देखें:
1. पारंपरिक मे १०-१५ सेंटीमिटर का बड़ा चीरा पडता है
लैप्रोस्कोपी में केवल ५-६ सेंटीमिटर के तीन छोटे चीरे पडते हैं जिनसे दूर्बीन डालकर उपचार किया जाता है
2. पारंपरिक में अपने हाथों से गठान निकालते हैं
लैप्रोस्कोपी में ही महीन और छोटे औजारों को चीरे से अंदर डालकर गठान निकाली जाती है
3. पारंपरिक में पेट खोलकर ही गठान का स्थान देखकर उसे निकालना पडता है
लैप्रोस्कोपी में क्रिया बहुत ही उन्नत स्तर की होती है क्योंकि यूट्रस और गठान का स्थान, कैमरा की मदद से निश्चित रूप से पता चलता है
4. पारंपरिक में इन्फेक्शन का खतरा ज्यादा होता है क्योंकि चीरा बडा होता है
लैप्रोस्कोपी में छोटा होने के कारण इन्फेक्शन का खतरा भी कम होता है
5. पारंपरिक में ज्यादा होता है
पारंपरिक पद्धती की अपेक्षा लैप्रोस्कोपी में भी कम होता है
6. पारंपरिक में याने आतडें या अन्य अवयव उस जगह पर चिपक जाने की संभावना होती है और इससे आगे जाकर संतानहीनता हो सकती है क्योंकि ऐसे चिपके हुए अवयवों की वजह से ट्यूब का काम ठीक से नहीं हो पाता
लैप्रोस्कोपी में अवयवों को हानी पहुँचने की या वे चिपक जाने की संभावना नहीं होती| इससे संतान पाने में आगे समस्या नहीं होती
7. ६पारंपरिक में ७ दिन भर्ती होना पडता है
लैप्रोस्कोपी में से ४८ घंटों तक भर्ती रहना काफी होता है
8. पारंपरिक में हफ़्तों का परहेज होता है
लैप्रोस्कोपिक शस्त्रक्रिया के बाद ४ दिन में रोज के काम कर सकते हैं और ८-१० दिन में पूर्ववत सारे व्यवहार करने लग सकते हैं
संशोधन की क्रांती और शस्त्रक्रिया पद्धतियों में विकास होने की वजह से फायब्रॉइड्स की समस्या का समाधान आसान हो गया है, खतरे भी कम हुए हैं और यह शस्त्रक्रिया करवाके संतानसुख पाना मुमकीन हो गया है| अगर आप ऐसी किसी समस्या से परेशान हैं तो अवश्य डॉक्टर को दिखाकर इलाज करवा लें| जुलै के महीने में फायब्रॉइड्स के विषय में जागरण लाने का हमारा प्रयास रहा है| अधिक जानकारी पाने के लिए हमारे ब्लॉग्ज अवश्य पढ़ते रहें|
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