पुरुषों की प्रजनन क्षमता कैसे बढाई जा सकती है?
ऐसा देखा गया है कि ६ में से १ दम्पती को संतानहीनता की समस्या होती है और बहुत बार ऐसा होता है कि महिला अपने घर की किसी महिला के साथ इलाज करवाने आ जाती है| सच तो यह है कि संतानहीनता के कारणों की जाँच करते समय सब से पहले पुरुष के सिमेन याने वीर्य का विश्लेषण करवाया जाये तो बेहद जल्द और आसानी से कई बार इलाज की कूँजी मिल जाती है! WHO के २०१० के मानकों के अनुसार किसी अच्छी लॅब में पुरुषों के वीर्य का विश्लेषण करवाने से स्पर्म की संख्या, स्पर्म की मोटिलिटी (आगे बढने की क्षमता) तथा स्पर्म मॉर्फॉलॉजी याने स्पर्म की बनावट के बारे में पता चल जाता है और कई बार उपचारों से संतानहीनता की समस्या का हल मिल जाता है| उपर्युक्त तीन घटकों का पुरुषों की फर्टिलिटी में असामान्य महत्व होता है और यदि इनमें से एक भी बात में समस्या हो तो संतानहीनता हो सकती है|
यह जान लेने पर स्वाभाविकता से यह प्रश्न आता है कि क्या पुरुषों की फर्टिलिटी को नैसर्गिक उपचारों से बढाया जा सकता है? इसका उत्तर है, हाँ, जरूर! पुरुषों की फर्टिलिटी में महत्वपूर्ण योगदान देनेवाले जो शुक्राणु याने स्पर्म होते हैं उनका लगातार निर्माण होता रहता है और इस निर्मिती का चक्र तीन महीनों का होता है| जीवनशैली से संबंधित ऐसी अनेक बातें हैं जिससे इस निर्मिती में बाधा आती है| उन बातों पर गौर करके उनमें सुधार करने से स्पर्म विषयक समस्याओं को हल किया जा सकता है|नैसर्गिक रूप से पुरुषों की फर्टिलिटी बढ़ाने के लिए निम्नलिखित घटकों पर गौर करना बहुत आवश्यक है:
१. फर्टिलिटी पर जाने अनजाने में विपरीत असर करनेवाला आम तौर पर पाया जानेवाला सब से महत्वपूर्ण कारण है, स्ट्रेस या तनाव! शारीरिक-मानसिक तनाव से स्पर्म की निर्मिती और गतिशीलता पर ही नहीं बल्कि स्पर्म की बनावट पर भी बड़ा असर होता है| स्ट्रेस को पूरी तरह रोकना तो हमारे हाथ में नहीं होता परन्तु हम उसका जागरूकता से व्यवस्थापन करके उसके दुष्परिणामों से अवश्य बच सकते हैं|
२. दूसरा महत्वपूर्ण कारण जो पुरुषों की फर्टिलिटी पर बहुत ज्यादा मात्रा में परिणाम करता है, वह है स्मोकिंग याने धूम्रपान और तंबाखू का सेवन| स्मोकिंग के धुए में ऐसे कई पदार्थ होते हैं जिनका असर स्पर्म पर, खास कर स्पर्म की गतिशीलता या आगे बढने की क्षमता पर विपरीत रूप से होता है| स्मोकिंग और फर्टिलिटी के अभाव का सीधा संबंध देखा गया है|
३. तीसरा एक कारण है जो गहरे रूप में संतानहीनता के लिए जिम्मेदार होता है| यह कारण है मम्प्स या गलगंड का इन्फेक्शन! इस संसर्ग में कान के दोनों तरफ की ग्लँड फूल जाती है| यह इन्फेक्शन एक व्हायरस के कारण होता है| यदि किसी को युवावस्था में मम्प्स हो जाता है तो इससे टेस्टीस में सूजन आ सकती है और आगे जाकर इस वजह से स्पर्म की निर्मिती पूरी तरह से बंद हो सकती है| इस खतरे को मोल लेने से अच्छा है की मम्प्स का प्रतिबंध करें! मम्प्स को रोकना बहुत आसान है| नौ महीने की उम्र में बच्चों को मम्प्स का टीका लगवाके यह खतरा टाला जा सकता है| लगभग १०० प्रतिशत सुरक्षितता इस टीके से पायी जाती है| फर्टिलिटी पर असर करनेवाला और एक कारण है टेस्टीस पर चोट लगना! टेस्टीस शरीर के बाहर होते हैं| ये बहुत ही नाजुक अंग हैं| फुटबॉल खेलने से या अन्य कोई खेल खेलते समय हुए अन्य कोई अपघात से या किसी सख्त वस्तू से आघात होने से यदि टेस्टीस में खून इकट्ठा हो जाता है तो आगे जाके फायब्रोसिस होकर स्पर्म की निर्मिती शून्य हो जाती है|
४. पुरुषों की फर्टिलिटी को कम करने में आज कल देखा जानेवाला और एक कारण है, अनॅबोलिक स्टिरोइड का उपयोग या तंदुरुस्ती के लिए जिम में कसरत के साथ testosterone supplements का बडी मात्रा में सेवन करना| इनका सीधा असर फर्टिलिटी की कमी पर देखा गया है| मसल मॉस बढ़ानेवाले जो स्टिरोइड होते हैं, उनका सीधा परिणाम प्रजनन व्यवस्था के अंगों पर होता है| इससे स्पर्म की निर्मिती कम हो जाती है और संतानहीनता की समस्या निर्माण हो जाती है| इसलिए हमेशा सावधान रहना चाहिए की बॉडी-बिल्डिंग के चक्कर में कही इनफर्टिलिटी का शिकार न बन जाएँ|
५. संतानहीनता का एक बहुत ही साधारणसा कारण यह भी हो सकता है की टेस्टीस का तापमान ३६ या ३७ सेंटीग्रेड से अधिक हो| शरीर का सामान्य तापमान ३६-३७ होता है लेकिन चूँकि टेस्टीस शरीर के बाहर होते हैं, उनका तापमान १-२ डिग्री कम होता है| यदि पुरुष को सॉना बाथ की आदत है या गोद में लॅपटॉप लेकर लंबे समय तक वे काम करते हों या किसी ऐसे पेशे में हों जिसमें अधिक तापमान में रहना पड़ता है तो इसका स्पर्म की निर्मिती पर सीधा परिणाम होता है| जितना अतिरिक्त तापमान ज्यादा, उतनी स्पर्म की निर्मिती कम!
दिखने में या सभी कारण सामान्य लगते हैं लेकिन इनपर गौर करके अगर जीवनशैली में परिवर्तन लाकर इन बातों में बदलाव लाया जाए तो इनफर्टिलिटी की समस्या कम हो सकती है| स्पर्म की सही मात्रा, उनकी यथावश्यक गतिशीलता और सही बनावट, इन तीन बातों के ठीक होते ही संतान उत्पत्ती की संभावनाएँ निश्चित रूप से बढ़ जाती है|
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