फरवरी विशेष ब्लॉग्स: जुडवाँ गर्भधारणा जागृती मालिका
IVF और जुडवाँ बच्चे होने की संभावना
फरवरी के इस माह में हम एक ऐसे विषय के बारे में जानेंगे जिसे लेकर मन में कई भ्रांतियाँ, कई सवाल होते हैं: टेस्ट ट्यूब बेबी और ट्विन्स याने कि जुडवाँ बच्चे होने की संभावना!
कई बार IVF कराने के लिए जो दंपती आते हैं उन्हें जुडवाँ ही हो तो चाहिए होते हैं और कुछ दंपती इसी बात से डरे होते हैं की IVF में जुडवाँ होने की संभावना होती है| इसीलिए ये बातें जान लेना आवश्यक है:
· कितने प्रतिशत ट्विस होते हैं?
· क्या इसका निर्धारण तथा नियंत्रण डॉक्टर के हाथ में होता है या नहीं?
· क्या ट्विन प्रेग्नंसी कम करने के लिए कोई उपाय है?
जुडवाँ बच्चे होना, IVF का एक अनिर्धारित परिणाम है| कोई भी डॉक्टर IVF करते समय नहीं चाहता कि जुडवाँ गर्भधारणा हो क्यूँकि एक स्वस्थ शिशु और स्वस्थ गर्भावस्था और प्रसूती हासिल करना, हर डॉक्टर का मकसद होता है| लेकिन ऐसा होना किसी के हाथ में नहीं होता|
IVF प्रक्रिया में जुडवाँ होने की संभावना अधिक होती है क्यूँकि इस प्रक्रिया में फलन और भ्रूण विकसन शरीर से बाहर होता है| लैब में तयार किया हुआ एम्ब्रियो बच्चेदानी में डाला जाता है और इस बात की कोई गैरंटी नहीं होती की शरीर में डाला गया एम्ब्रियो इम्प्लांट हो जाए| इसलिए सावधानी के लिए, दो या कभी कभी तीन एम्ब्रियो बच्चेदानी में डाले जाते हैं| ऐसा होने से अगर शरीर ने दो एम्ब्रियो स्वीकृत कर लिए तो जुडवाँ बच्चे हो जाते हैं|
तीसरे दिन की स्टेज में अगर किसी महिला में एक एम्ब्रियो डाला जाता है तो केवल १५ प्रतिशत केसेस में प्रेग्नंसी रह जाती है और बाकी ८५ प्रतिशत केसेस में IVF फेल हो जाता है| इसलिए, IVF की परिणामकारकता तभी बढ़ेगी जब एक से ज्यादा चान्स लिए जायेंगे और इसीलिए एक से ज्यादा एम्ब्रियो डाले जाते हैं| अगर एक ही एम्ब्रियो डाला गया तो ९९.९ प्रतिशत ट्विन्स नहीं होंगे| अगर एम्ब्रियो का विभाजन हो जाए तो एक एम्ब्रियो डालने पर भी मोनोझायगोटिक ट्विन्स हो सकते हैं लेकिन इसकी संभावना बहुत कम है| जब दो एम्ब्रियो डाले जाते हैं तो प्रग्नंसी रहने की संभावना २५-३० प्रतिशत तक बढ़ जाती है और इस के १५ प्रतिशत केसेस में ट्विन्स हो सकते हैं| अगर तीन एम्ब्रियो डाले गये हैं तो प्रेग्नंसी की संभावना ४०-४५ प्रतिशत होती है और इसमें से २५ प्रतिशत ट्विन्स होते हैं| इन सभी आकड़ों में परिस्थिती के अनुसार थोडा बहुत कम-ज्यादा होता रहता है| लायनिंग की स्थिती, एम्ब्रियो की गुणवत्ता, महिला का वैद्यकीय इतिहास, इन सभी बातों का परिणाम होता रहता है| इस से यह बात स्पष्ट हो जाती है कि जितने एम्ब्रियो ज्यादा डाले जायेंगे उससे गर्भधारणा की संभावना तो बढ़ेगी पर ट्विन्स होने की भी बढ़ेगी!
पाँचवे दिन को अगर ब्लास्टोसिस्ट स्टेज को, एक एम्ब्रियो का ट्रान्सफर हुआ है तो २०-२५ प्रतिशत प्रेग्नंसी की संभावना होती है और ट्विन्स की संभावना बिलकुल कम होती है| अगर दो ब्लास्टोसिस्ट डाले जाते हैं तो प्रेग्नंसी की संभावना ४०-४५ प्रतिशत होती है और ट्विन्स की ३०-३५ प्रतिशत! तीन ब्लास्टोसिस्ट कभी नहीं डाले जाते क्यूँकि इसमें जुडवाँ बच्चे होने की संभावना सर्वाधिक होती है|
अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुसार जुडवाँ बच्चे होने का आकड़ा किसी भी यूनिट में १५ प्रतिशत से कम होना आवश्यक है| यदि जुड़वाँ गर्भधारणा हो जाती है तो ४० प्रतिशत केसेस में एक सैक कुछ दिनों के बाद अपने आप गायब हो जाता है (व्हॅनिशिंग ट्विन सिंड्रोम) और एक ही स्वस्थ बच्चा जन्म लेता है| अगर ट्विन्स कायम भी रहते हैं तो भी घबराने की आवश्यकता नहीं होती| डॉक्टर विशिष्ट अंतराल पर कुछ विशेष सवधानियाँ लेते हैं और डिलिव्हरी स्वस्थ हो जाती है|
लेकिन जुडवाँ गर्भधारणा में ब्लीडिंग, मिसकैरेज, कम वजन के बच्चे होना तथा समयपूर्व प्रसूती की संभावना अधिक होती है| इसलिए एक बच्चा होना ज्यादा सुरक्षित माना जाता है| लेकिन ऐसी भी एक सोच हो सकती है की अगर बड़े प्रयास और उपचार के बाद गर्भधारणा हुई हो तो ट्विन बच्चे होने से जल्दी से परिवार पूरा हो जाता है और बार बार IVF प्रक्रिया से गुजरना नहीं पड़ता| विदेशों में केवल एक ही एम्ब्रियो डाला जाता है क्यूँकि वहाँ की सरकार स्वास्थ्य व्यवस्था और नर्सरी का खर्चा उठाती है और इसलिए ३५ साल से कम उम्र की महिलाओं में एक ही एम्ब्रियो डालने की अनुमती है|
मरीज की स्थिती, उम्र, एंडोमेट्रियम की स्थिती, IVF का इतिहास, जुडवाँ बच्चे स्वीकारने की दंपती की रजामंदी; इन सब बातों को ध्यान में रखते हुए जुडवाँ बच्चे होने का चान्स लेना चाहिए| जुडवाँ बच्चे होना या न होना किसी के हाथ में नहीं होता, डॉक्टर के भी नहीं| इसमें ‘लक फॅक्टर’ बेहद ही महत्वपूर्ण है| इन सभी बातों के बारे में जागृती और ज्ञानप्रसारण होना बहुत ही आवश्यक है|
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